आमलकी एकादशी व्रत शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत में आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधि-विधान है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि यह एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है।
सौ गायों को दान में देने के उपरान्त जो फल प्राप्त होता है। वही फल आमलकी एकादशी का व्रत करने से भी प्राप्त होता है। इस व्रत में आंवले के पेड का पूजन किया जाता है। आंवले के वृ्क्ष के विषय में यह मत है, कि इसकी उत्पति भगवान श्री विष्णु के मुख से हुई है। एकादशी तिथि में विशेष रुप से श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। आंवले के पेड की उत्पति को लेकर एक कथा प्रचलित है।
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के थूकने के फलस्वरुप उनके मुख से चन्दमा का जैसा एक बिन्दू प्रकट होकर पृ्थ्वी पर गिरा। उसी बिन्दू से आमलक अर्थात आंवले के महान पेड की उत्पति हुई। यही कारण है कि विष्णु पूजा में इस फल का प्रयोग किया जाता है। श्री विष्णु के श्री मुख से प्रकट होने वाले आंवले के वृ्क्ष को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इस फल के महत्व के विषय में कहा गया है, कि इस फल के स्मरण मात्र से गऊ दान करने के समान फल प्राप्त होता है। यह फल भगवान विष्णु जी को अत्यधिक प्रिय है। इस फल को खाने से तीन गुणा शुभ फलों की प्राप्ति होती है।