आमलकी एकादशी के दिन प्रात: स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु का प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूँ. मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें. इस संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार मन्त्र के साथ भगवान की पूजा करें.
भगवान नारायण की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें. सबसे पहले वृक्ष के चारों ओर की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से लीपकर पवित्र करें. पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें. इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें. कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें. इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें.
कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं. अंत में कलश के ऊपर श्री हरि विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें. रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए विष्णु भगवान का स्मरण करें.
द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम जी की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें. इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें.