ब्राह्मणों-क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्र नाम हैं जैसे चंद्रवंशी।
पौराणिक संदर्भों के अनुसार चंद्रमा को तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान बताया गया है जिसका नाम 'सोम' है। दक्ष प्रजापति की सत्ताईस पुत्रियां थीं जिनके नाम पर सत्ताईस नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही गईं। चन्द्रमा का इनमें से रोहिणी के प्रति विशेष अनुराग था। चन्द्रमा के इस व्यवहार से अन्य पत्नियां दुखी हुईं तो दक्ष ने उसे शाप दिया कि वह क्षयग्रस्त हो जाए जिसकी वजह से पृथ्वी की वनस्पतियां भी क्षीण हो गईं।
फिर विष्णु जी की कृपा से समुद्र मंथन के बाद चन्द्रमा का उद्धार हुआ और क्षय की अवधि पाक्षिक हो गई। एक अन्य कथा के अनुसार चन्द्रमा ने वृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया था जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा ख़ुद को चंद्रवंशी कहते थे।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदारणावसंभवं।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोमुकुटभूषणं।।
चन्द्र ग्रह ऋषि अत्रि के नेत्र के जल से उत्पन्न हुए थे। जो कि प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओ के पति है, चन्द्र कर्क राशि के स्वामी है। इनका उच्च स्थान वृषभ राशि में एवं नीच स्थान वृश्चिक राशि में है। चन्द्रदेव की दशा 10 वर्ष की होती है। चन्द्रदेव को प्रसन्न करने हेतु इनके जप करने या करवाने चाहिए।