विनायक चतुर्थी व्रत प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को करना चाहिए। इस दिन व्रत कर्ता तिल का भोजन दान करता है और स्वयं रात्रि में तिल का जल ग्रहण करता है। यह व्रत दो वर्षों तक करना चाहिए। कृत्यकल्पतरु और हेमाद्रि ने इसे गणपति चतुर्थी भी कहा है।
हिन्दू धर्मशास्त्रों और ज्योतिष विज्ञान के अनुसार चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान श्री गणेश जी हैं। इसलिए हिन्दू पंचांग के हर माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर प्रथम पूज्य देवता श्री गणेश की आराधना को समर्पित विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। यह चतुर्थी व्रत वरद विनायकी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
इस व्रत के नाम से ही इस व्रत का फल भी स्पष्ट हो जाता है। वरद का अर्थ होता है - वर देने वाला यानि मनोरथ पूरे करने वाला और विनायक भगवान श्री गणेश का ही नाम है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है विघ्र हरने वाले नायक, जो गणपति कहलाते हैं। इस प्रकार विनायकी चतुर्थी का व्रत करने से हर व्यक्ति की कामनाएं पूरी होती है और विघ्र-बाधाएं दूर होती है।
व्रतविधि :
प्रात:काल स्नान एवं नित्यकर्म से शीघ्र निवृत्त हों।
- मध्यान्ह के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
- संकल्प मंत्र के बाद षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। इस पूजन में भगवान श्री गणेश को सोलह प्रकार की पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। इनमें धूप, दीप, गंध यह शास्त्रों में वर्जित बताया गया है।
- गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र बोलते हुए २१ दुर्वा-दल चढ़ाएं।
ॐ गणाधिपाय नम:।
ॐ उमापुत्राय नम:।
ॐ विघ्ननाशाय नम:।
ॐ विनायकाय नम:।
ॐ ईशपुत्राय नम:।
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम:।
ॐ एकदन्ताय नम:।
ॐ गजवक्त्राय नम:।
ॐ मूषकवाहनाय नम:।
ॐ कुमारगुरवे नम:।
- भगवान गणेश का मंत्र ओम गं गणपतये नम: बोलकर भी दुर्वा चढा सकते हैं। इस मंत्र का १०८ बार जप भी करें।
- गुड़ या बूंदी के २१ लड्डुओं का ही भोग लगाना चाहिए। इनमें से ५ लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और ५ ब्राह्मण को प्रदान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें।
- पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें।
- ब्राह्मण भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा प्रदान करने के पश्चात् संध्या के समय स्वयं भोजन ग्रहण कर सकते हैं। संभव हो तो उपवास करें। व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर श्री गणेश जी की कृपा से मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।