हिंदी विक्रमी सम्वत पंचांग के भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जो कि हरतालिका तीज के दो दिन बाद आती है को ऋषि पंचमी का व्रत होता है।
इस दिन पांच स्थानों पर चावल और दही रखकर स्त्रियां व पुरूष दोनों पूजा करते हैं। ‘तिन्नी’ (बिना बोया धान) चावल प्रसाद रूप में खाया जाता है। किसी-किसी स्थान पर प्रातः काल उठकर लटजीरा (अपामार्ग) की दातून की जाती है। 108 दातून बनाई जाती है।
गोबर, तिल व बालू लगाकर गंगा जल से स्नान किया जाता है। सात कुशा के ऋषि व अरूधती बनाते व पूजा करते हैं। पंडित जी के द्वारा कथा का पाठ किया जाता है। सात वर्ष बाद इसका उद्यापन होता है, जिसमें सात जनाने- मर्दाने कपड़े व सुहाग का सामान दान किया जाता है।