यह व्रत भादों सुदी अष्टमी से प्रारम्भ होकर आश्विन कृष्ण अष्टमी को पूर्ण होता है। इस व्रत से लक्ष्मी व हाथी की पूजा होती है। केले के पत्ते में लाल चन्दन से महालक्ष्मी को पूज कर रखा जाता है। लक्ष्मी के दोनों ओर दो हाथी रखे जाते हैं। लक्ष्मी को दूध की धार से स्नान कराया जाता है। कुछ स्थानों पर आटे या मिट्टी का हाथी बनाकर उसकी पूजा की जाती है।
हाथी को धन का प्रतीक माना जाता है। कच्चे सूत के सोलह धागे लेकर, सोलह गांठें लगाकर गण्डा बनाया जाता है। स्त्रियां स्नान के समय सोलह लोटे जल सर पर डालती हैं तथा सोलह अंजुलि जल से सूर्य को अध्र्य देती हैं। मीठे आटे की सोलह टिक्की बनाई जाती है और इन्हें सोलह दोनों में रखकर दान किया जाता है। इस व्रत को सोलह वर्ष तक रखने के उपरान्त उद्यापन किया जाता है।