Har Chhath Fast

 

हिंदी विक्रमी पंचांग के अनुसार भादों माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत मनाया जाता है। श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का इसी दिन जन्म हुआ था। 

पुत्रवती स्त्रियाँ, अपने पुत्र की मंगलकामना के लिए यह व्रत रखती हैं। व्रत करने वाली स्त्रियाँ बिना जोता-बोया अन्न, अपने आप ही उगने वाला ‘तिन्नी’ का भात खाती हैं। भैंस का दूध, दही, घी का प्रयोग किया जाता है। गाय का दूध, दही आदि नहीं खाया जाता। इस व्रत में शक्कर भी नहीं खाई जाती है।

घर की एक दीवार को गोबर से लीपकर, ऐपन से अल्पना बनाई जाती है। इसमें दो पुतले तथा उनके पास नेवले बनाए जाते हैं। जिसका भाव यह है कि पुत्रों की सर्प से रक्षा होती रहे। चारों ओर अनेक देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। शेर, गाय, बछड़े आदि भी बनाये जाते हैं। 

स्त्रियाँ आँगन में झरबेरी और पलाश की डाल गाड़ती है। छह प्रकार की बहुरी छह मिट्टी के कुल्हड़ों में भरकर रख दी जाती है। किन्हीं स्थानों पर पूरी व कच्चे चने से पूजा की जाती है। पत्तों में थोड़ा-थोड़ा दही और चावल रखा जाता है। जो स्त्रियाँ व्रत करती हैं वे छह-छह पत्ते चाटती हैं। कुल्हड़ लड़कों को दे दिये जाते हैं। पूजा के उपरान्त स्त्रियाँ हर छठ की कथा कहती हैं।