तीर्थो में पंचवटी का महत्त्व है। पांच वटों से युक्त स्थान को पंटवटी कहा गया है। अगस्त्य के परामर्श से श्रीराम ने सीता व लक्ष्मण के साथ वनवास काल में यहां निवास किया था। वट वृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय रहता है। अक्षय सौभाग्य तथा निरंतर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए वट वृक्ष की आराधना की जाती है।
वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था। तब से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है। इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं अखण्ड सौभाग्य एवं परिवार की समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। व्रत की परिक्रमा करते समय एक सौ आठ बार या यथाशक्ति सूत लपेटा जाता है। साड़ी पर रुपया रखकर बायने के रूप में सास को देकर आशीर्वाद लिया जाता है। महिलाएं सावित्री सत्यवान की कथा सुनती हैं। सावित्री की कथा को सुनने से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होते हैं और विपत्तियां दूर होती हैं।