इस दिन लक्ष्मी का पूजन करना श्रेष्ठ है, क्योंकि देवताओं ने अपना राज्य को पुनः पाने के लिए महालक्ष्मी का ही पूजन किया था।
इस दिन व्रती को चाहिए कि प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर भगवान वामनजी की प्रतिमा स्थापित करके मत्स्य, कूर्म, वाराह, आदि नामों का उच्चारण करते हुए गंध, पुष्प आदि से विधिपूर्वक पूजन करें। फिर दिनभर उपवास रखें और रात्रि में जागरण करें। दूसरे दिन पुनः पूजन करें तथा ब्राह्मण को भोजन कराएँ व दान दें। तत्पश्चात स्वयं भोजन करके व्रत समाप्त करें।