नारद जी ने बताया की आश्चिन मास की कृ्ष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल में श्रद्वासहित स्नान आदि करना चाहिए. इसके बाद दोपहर में भी स्नान करना चाहिए. स्नान आदि करने के बाद श्रद्वा पूर्वक अपने पितरों का श्राद्व करना चाहिए.
इसके अगले दिन एकादशी तिथि के दिन इन्दिरा एकादशी का व्रत करना चाहिए. एकादशी के दिन उपवासक को जल्द उठना चाहिए. उठने के बाद नित्यक्रिया कार्यों से मुक्त हो जाना चाहिए. तत्पश्चात उसे स्नान और दांतुन करनी चाहिए. और इसके पश्चात ही श्रद्वा पूर्वक व्रत का संकल्प लेना चाहिए. एकादशी तिथि के व्रत में रात्रि के समय में ही फल ग्रहण किये जा सकते है.
तथा द्वादशी तिथि में भी दान आदि कार्य करने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए. एकादशी तिति की दोपहर को सालिग रामजी जी मूर्ति को स्थापित किया जाता है,जिसकी स्थापना के लिये किसी ब्राह्माण को बुलाना चाहिए. ब्राह्माण को बुलाक उसे भोजन कराना चाहिए.
और दक्षिणा देनी चाहिए. बनाये गये भोजन में से कुछ हिस्से गौ को भी देने चाही. और भगवान श्री विष्णु की धूप, दीप, नैवेद्ध आदि से पूजा करनी चाहिए. एकादशी रात्रि में सोना नहीं चाहिए. पूरी रात्रि जागकरभगवान विष्णु का पाठ या मंत्र जाप करना चाहिए. अन्यथा भजन, किर्तन भी किया जा सकता है. अगले दिन प्रात: स्नान आदि कार्य करने के बाद ब्राह्माणों को दक्षिणा देने के बाद ही अपने परिवार के साथ मौन होकर भोजन करना चाहिए.