एक दार्शनिक किसी काम से बाहर जा रहे थे। रास्ते में टैक्सी वाले का बुझा सा चेहरा देख कर पूछा, क्यों भाई बीमार हो? यह सुनकर टैक्सी वाला बोला, सर, क्या आप डॉक्टर हैं? दार्शनिक ने कहा, नहीं, पर तुम्हारा चेहरा तुम्हें थका हुआ और बीमार बता रहा है। टैक्सी वाला ठंडी आह भरते हुए बोला, हां, आजकल पीठ में बहुत दर्द रहता है। उम्र पूछने पर बताया कि वह छब्बीस साल का है। सुन कर दार्शनिक ने कहा, इतनी कम उम्र में पीठ दर्द? यह तो बिना दवा के ही ठीक हो सकता है, थोड़ा व्यायाम किया करो। लेकिन थोड़ी देर तक कुछ सोचने के बाद दार्शनिक ने फिर पूछा, क्यों भाई, आजकल क्या धंधे में भी कड़की चल रही है? टैक्सी वाला चौंका, `साहब, आपको मेरे बारे में इतना कुछ कैसे पता है? क्या आप कोई ज्योतिषी हैं? दार्शनिक ने मुस्कराते हुए कहा, नहीं। लेकिन तुम्हारे बारे में मैं ही क्या, कोई भी ये बातें बता देगा। टैक्सी वाला हैरान होकर बोला, भला ऐसे-कैसे कोई भी मेरे बारे में सब कुछ
बता देगा? इस पर दार्शनिक बोले, जब तुम हर वक्त बुझे हुए निस्तेज चेहरे से सवारियों का स्वागत करोगे, तो भला कौन तुम्हारी टैक्सी में बैठना चाहेगा? इस तरह आमदनी अपने आप ही कम हो जाएगी। आमदनी कम होने से तुम्हें गुस्से के साथ-साथ सुस्ती का भी अहसास होगा। यह सारी बातें सुन कर टैक्सी वाला बोला, बस सर, आज आपने मुझे मेरी गलती का अहसास
करा दिया। आज से ही मैं अपनी इन कमियों को दूर करके अपने अंदर उत्साह का संचार करूंगा। इस घटना के लगभग चार-पांच वर्षों बाद एक दिन एक सज्जन ने उन दार्शनिक की पीठ पर हाथ रखते हुए मुस्कुरा कर कहा, सर कैसे हैं? दार्शनिक बोले, ठीक हूं बेटा, पर मैंने तुम्हें पहचाना नहीं। इस पर वह सज्जन बोले, सर, मैं वही टैक्सी वाला हूं जिसे आपने उत्साह और मुस्कराहट का पाठ पढ़ाया था। आपकी शिक्षा के ही कारण आज मैं एक बड़ी टैक्सी एजेंसी का मालिक हूं। और अब मैं भी हर उदास व्यक्ति को मुस्कराते हुए काम करने की सलाह देता हूं। जिंदगी में उत्साह एवं मुस्कराहट का होना बहुत जरूरी है। उत्साह बिगड़ते हुए काम को भी बना देता है, वहीं उदासीन और थका हुआ चेहरा बने-बनाए काम को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज धैर्य व सहनशीलता की कमी के कारण हम अपनी असफलता का कारण इधर-उधर खोजते हैं, जबकि असफलता का कारण हमारे स्वयं के ही अंदर छिपा होता
है। काम कठिन हो या सरल, किंतु अगर उसे उत्साह के साथ मुस्कराते हुए किया जाए, तो वह न केवल समय से पहले पूरा होता है, बल्कि अच्छी तरह से पूरा होता है। कई बार जब हमारा काम करने का दिल नहीं होता अथवा हम उस काम को करते हुए उत्साह नहीं दिखाते तो वह काम अत्यंत कठिन और बोरियत भरा लगता है। इच्छा न होने पर काम करते समय ईर्ष्या,
क्रोध व तनाव जैसे आवेग उसकी राह में अनेक
बाधाएं खड़ी कर देते हैं। वहीं, उत्साह, मुस्कराहट, प्रेम आदि के भाव किसी काम को सहज और सरल बना देते हैं। इसके विपरीत किसी कार्य में उत्साह बनाए रखने पर उसके साथ अनेक दूसरे काम भी निबटाए जा सकते हैं। कई लोग अपने जीवन में उच्च पद प्राप्त कर लेते हैं, जबकि कई लोग साधारण स्तर तक ही पहुंच पाते हैं। इसके पीछे भी यही कारण होता है। जो तय मंजिल तक नहीं पहुंच पाते, उनमें उत्साह का अभाव होता है। यदि व्यक्ति हर सुबह
उठते ही स्वयं के अंदर उत्साह का संचार करे और मन में यह दृढ़ निश्चय करे कि आज का दिन उसके लिए अत्यंत शुभ है और आज वह अपने अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करेगा तो वास्तव में वह ऐसा कर लेगा।