महालक्ष्मी सदैव भगवान विष्णु की सेवा में लगी रहती हैं, शास्त्रों में जहां-जहां विष्णु और लक्ष्मी का उल्लेख आता है वहां लक्ष्मी श्री हरि के चरण दबाते हुए ही बताई गई हैं। विष्णु ने उन्हें अपने पुरूषार्थ के बल पर ही वश में कर रखा है। लक्ष्मी उन्हीं के वश में रहती है जो हमेशा सभी के कल्याण का भाव रखता हो। समय-समय पर भगवान विष्णु ने जगत के कल्याण के लिए जन्म लिए और देवता तथा मनुष्यों को सुखी किया। विष्णु का स्वभाव हर तरह की मोह-माया से परे है। वे दूसरों को मोह में डालने वाले हैं। समुद्र मंथन के समय उन्होंने देवताओं को अमृत पान कराने के लिए असुरों को मोहिनी रूप धारण करके सौंदर्य जाल में फंसाकर मोह में डाल दिया। मंथन के समय ही लक्ष्मी भी प्रकट हुईं। देवी लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए देवता और असुरों में घमासान ल़डाई हुई। भगवान विष्णु ने लक्ष्मी का वरण किया। लक्ष्मी का स्वभाव चंचल है, उन्हें एक स्थान पर रोक पाना असंभव है। फिर भी वे भगवान विष्णु के चरणों में ही रहती है।