जो भाव पापयुक्त हो या जिस भाव पर क्रूरग्रह की शत्रु दृष्टि हो और उसी भाव मे मुन्था हो, तो वह शुभस्थान होने पर भी शुभफल न देकर अशुभफल ही प्रदान करता है |
यदि मुन्था अपने स्वामी से या शुभग्रह से युक्त हो या उसके द्वारा द्रष्ट हो, तो अशुभ स्थान भी किंचित शुभफल प्रदान कर देता है |
यदि मुन्था अपने स्वामी या शुभग्रह से ईत्थशालिनी हो, तो वह जिस भाव मे है, उस भाव सम्बन्धी शुभफल को बढ़ाती है |
यदि मुन्था निर्बल ग्रह के साथ ' मूशरीफ ' योग करती है, तो उस भाव सम्बन्धी शुभफल को नाश क्र अशुभफल को ही बढ़ती है |
यदि मुन्था जन्मलग्न से ६, ८, या १२वें स्थान मे हो, तो उस भाव का नाश करती है | जैसे द्वतीय में हो, तो ध का, तृतीय में हो, तो भाई का | इसी प्रकार अन्य स्थान पर भी फल समझना चाहिए |
मुन्था जन्मलग्न से चौथे भाव मे शुभग्रहों के साथ हो, तो पिता का संचित द्रव्य मिलता है | सातवें भाव मे होने पर ससुर से धन-लाभ होता है, परन्तु यदि पापग्रहयुक्त हो, तो विपरीत फल समझना चाहिए |
वर्षलग्न मे मुन्था स्वस्वामी या शुभग्रह युक्त अथवा द्रष्टि मे जन्म लग्न से जिस भाव मे हो, उस भाव की वृद्धि करती है |