प्राचीनकालमें एक वनमें वाल्या नामका एक मछुआरा रहता था । आने-जानेवाले लोगोंको डरा-धमकाकर वह लूट लेता था । उनसे पैसे और गहने छीन लेता । उस पैसेसे वह अपनी गृहस्थी चलाता था । नारदमुनि देवताओंके ऋषि थे । वे ‘नारायण नारायण ।’का नामजप करते थे । एक दिन नारदमुनि उसे देखकर दुखित हुए । वाल्या मछुआरा ऐसे ही पाप करता रहा, तो उसे नरकमे दंड भोगना पडेगा । वे तुरंत वाल्या मछुआरेके पास गए एवं कहा,‘‘यह पाप तू क्यों कर रहा हैं ? लोगोंको कष्ट देकर पैसा लूट लेना पाप हैं ।’’ वाल्याने कहा, ‘‘यह पाप मैं, पत्नी एवं बच्चोंका पेट भरनेके लिए करता हूं ।’’ तब नारदमुनिजीने कहा, ‘‘तुम जिनके लिए यह पाप करते हो, उनसे जाकर पूछो, कि मैं जो पाप करके तुम्हारे लिए लाता हूं, तो मेरे पापोंका आधा भाग तुम लोगे क्या ?’’ वाल्या मछुआरेने घर जाकर पत्नी और बच्चोंसे पूछा । तब उन्होंने कहा, ‘‘आपके पापोंका फल हम नहीं भोगेंगे । आप लोगोंको कष्ट देकर पैसा कमाते हो, तो उसका पाप आप ही भोगना ।’’ यह सुन कर वाल्याको दु:ख हुआ । मैंने इतने वर्ष निरपराध लोगोंको कष्ट दिया । उसे अपने कर्मोंका पश्चाताप हुआ । वह तुरंत नारदमुनिजीrकी शरणमें आया एवं उसने कहा, ‘‘आप मुझे क्षमा करें । इस घोर पापसे मुझे मुक्त करें ।’’ नारदमुनिजीने उसे प्रेमसे कहा,‘‘ वाल्या तुम्हें पश्चताप हो रहा है ना ? अब तुम पापोंसे मुक्त होनेके लिए ‘राम राम’ नामजप करो । जब तक मैं वापस नहीं आता, तब तक यहीं बैठकर नामजप करना । मैं शीघ्र वापस आता हूं ।’’ ऐसा कहकर नारदमुनि चले गए ।
अब वाल्या मछुआरा एक ही स्थानपर बैठकर नामजप करने लगा । उसे ‘राम राम’ कहना नहीं आता था । तो वह ‘मरा-मरा’ कहने लगा; वह नामजप बडे मनसे करता था । ऐसे करते-करते एक दिन बीता, चार दिन बीते, एक सप्ताह बीता तो भी वाल्या मछुआरा नामजप करता ही रहा । एक मास, दो मास, ऐसे करते-करते कई वर्ष बीत गए; परंतु नारदमुनिजी नहीं आए; तो भी वाल्याका नामजप अखंड चलता रहा । वह जिस वनमें बैठा था, उस वनकी लाल दीमकोंने वाल्याके आसपास बामी बना ली । तो भी वाल्या नहीं उठा । धीरे-धीरे वाल्याका पूरा शरीर दीमकोंसे ढक गया । उसने मनमें निश्चय किया कि नारदमुनिजीने बताया है तो उनके आने तक मैं यहीं बैठकर नामजप करता रहूंगा । ऐसे बिना कुछ खाए-पिए सैकडों वर्षोंतक नामजप करनेवाले वाल्यासे ईश्वर प्रसन्न हो गए, एवं ईश्वरने उससे कहा, ‘‘मैं तुम्हारे नामजपसे प्रसन्न हूं । अब तुम वाल्या मछुआरा नहीं रहे । आजसे तुम वाल्मिकि ऋषि हो । यह कहकर ईश्वरने उसे आर्शीवाद दिया । उसी वाल्मिकि ऋषिजीने रामायण लिखी । वाल्मिकि ऋषि अत्यधिक प्रेम करनेवाले थे । उनके आश्रममें शेर एवं हिरन भी एक साथ रहते थे । यह सब नामजपके कारण ही हुआ । यदि हम भी प्रतिदिन बहीमें लिखकर नामजप लिखेंगे । वाल्या मछुआरेसे वाल्मिकि बननेमें नारदमुनिजीने उनकी सहायता की ।