प्राय : प्रत्येक व्यक्ति यह जानना चाहता है कि ज्योतिष की दृष्टी से मेरा अमुक वर्ष कैसा रहेगा | उक्त वर्ष में प्रत्येक ग्रह का फल जानने के लिए
वर्षलग्न का निर्माण किया जाता है | इसी विषय की ताजिक शास्त्र भी कहते है | यह एक समपूर्ण विषय है |
वर्षफल
वर्षफल बनाने की विधि जातकशास्त्र में वर्णित है इस शास्त्र का प्रचार भारत में यवनों के सम्पर्क से हुआ है | मानव की जन्मकुण्डली में जो - जो ग्रह जिस-जिस भाव मे स्थिर होते है, पंचाग की स्थिति के अनुसार जब वे ग्रह अनिष्ट भाव में आकार पाड़ते है, तब उसका फल भी न्यूनाधिक हो जाता है |
इसमे प्रत्येक वर्ष का पृथक्-पृथक् फल निकाला जाता है और प्रत्येक वर्ष में 9 ग्रहों को फल देने का अधिक देते हुए भी एक प्रधान ग्रह को वर्षेश बना लिया जाता है | भारतीय आचार्यों ने यवनों की इस विद्या का खुलकर स्वागत किया और उसे अपने ढांचे में ढालकर वर्षपत्र- विषयक अनेक ग्रन्थों की रचना की | इन आचार्यों ने वर्ष - प्रवेश समय की कुण्डली में 12 भागों में स्थत 9 ग्रहों के फल का विवेचन जातकशास्त्र के अनुसार किया तथा जन्मकालीन एवं वर्षकालीन कुण्डली के ग्रहों का साम्य-वैषम्य देखकर तदनुसार उस वर्ष का फल जातक के लिया स्पष्ट किया तथा निम्न 5 ग्रहों मे से किसी एक बली ग्रह को स्वामी निर्धारित करने की प्रकिया घोषित की |
1. जन्मकुण्डली की लग्न राशि का स्वामी |
2. वर्ष- प्रवेश कल की लग्न का स्वामी |
3. वर्ष का मुन्थेश |
4. त्रिराशिपति |
5. वर्ष- प्रवेश दिन मे हो, तो वर्षकुण्डली की सूर्याधिष्ठित राशि का स्वामी और रात मे प्रवेश हो, तो वर्षकुण्डली की चन्द्राधिष्ठित राशि का स्वामी |