तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी स्थित 51 शक्तिपीठों में एक शुचीन्द्रम शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव जब माता सती के शरीर को लेकर ब्रह्माण्ड भ्रमण कर रहे थे तब माता सती की देह से उनका उर्ध्व दन्त (ऊपर का दांत) यहीं पर गिर पड़ा था. माता सती यहां शक्ति नारायणी रूप में जबकि भगवान भोलेनाथ संहार भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हैं. मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवती देवी ने महाराक्षस बाणासुर का वध किया था और यहीं पर देवराज इन्द्र को महर्षि गौतम के शाप से मुक्ति मिली थी. यहां के मंदिर में नारायणी मां की भव्य एवं भावोत्पादक प्रतिमा है और उनके हाथ में एक माला है. निज मंदिर में भद्रकाली जी भी का मंदिर है, ये भगवती देवी की सखी मानी जाती हैं. माता के इस शक्तिपीठ में पूजा-उपासना का एक अलग महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार यहां उपासना करने से वैदिक और अन्य मंत्र सिद्ध होते हैं. नवरात्र, चैत्र पूर्णिमा, आषाढ़ एवं आश्विन आमवस्या, शिवरात्रि आदि विशेष सुअवसरों पर यहां विशेष उत्सव होते हैं, जिसमें देवी मां का हीरों से श्रृंगार किया जाता है. कन्याकुमारी में स्नान करने से भक्तों के सारे पाप मिट जाते हैं और वे पवित्र हो जाते हैं.