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शूल योग

 

शूल योग में जन्म लेने वाले जातक के गुण


शूल योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति दरिद्र, रोगी, कुकर्मी, कदाचित शूलरोग से पीड़ित होने वाला होता है। कुंडली में भी शूल योग विद्यमान हो तो व्यक्ति उदरशूली होता है। अर्थात् ऐसे मनुष्य के पेट में बहुत दर्द होता है। शूल एक प्रकार का अस्त्र है और इसके चूभने से बहुत बहुत भारी पीड़ा होती है। जैसे नुकीला कांटा चूभ जाए। इस योग में किए गए कार्य से हर जगह दुख ही दुख मिलते हैं। वैसे तो इस योग में कोई काम कभी पूरा होता ही नहीं परंतु यदि अनेक कष्ट सहने पर पूरा हो भी जाए तो शूल की तरह हृदय में एक चुभन सी पैदा करता रहता है। अत: इस योग में कोई भी कार्य न करें अन्यथा आप जिंदगी भर पछताते रहेंगे।

जातक का शरीर दुबला पतला होता है माथा चौडा और थोडी पतली होती है जातक शुरु से ही माता के लिये कष्ट का कारक होता है पिता के द्वारा पैदा होने के बाद तामसी कारणो मे जाने से तथा ननिहाल खानदान के द्वारा पिता और पिता परिवार के लिये बुरा सोचने के कारण अक्सर पारिवारिक क्लेश का कारण बना रहना होता है। जातक के परिवार वाले शुरु मे तो पास मे रहते है लेकिन माता की हठधर्मी के कारण पिता एक साथ जातक को दूर जाकर अभाव मे रहना पडता है। जातक के दादा और पिता मे आपसी सामजस्य पिता की आदतो से नही बैठ पाता है जातक को ऊंचे स्थान से कूदने पेडो पर चढने या ऊंचे स्थान पर जाने तथा रोमांच आदि के काम करने से शरीर हानि की आशंका भी रहती है जहां पर जातक रहता है उसके प्रति लोग आशंकित ही रहते है वह परिवार मे रहता है तो परिवार वाले और कार्य स्थान मे रहता है तो कार्य स्थान वाले लोग उससे डरते ही रहते है कब कैसे और क्या कर बैठे किसी को पता नही होता है।झूठी बात सोचने या कहने के पहले जातक को नाक या कान सहलाने की आदत से भी परखा जा सकता है।