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प्रभु को ही मित्र बनाया

 

 

कबीरदास जी अपनी कुटिया में नित -प्रति अपनी भजन मंडली के साथ प्रभु गुणगान किया करते !उनकी कुटिया के निकट एक बड़ी कोठी थी ;जिसमे एक दुष्ट महिला रहा करती !उसे कबीर जी का भजन-पाठ नहीं भाता था ;वह मन ही मन कबीर जी से कुढा करती !एक दिन उसकी कुष्ठा इतनी बढ़ गयी कि उसने किराये के गुंडों से कबीर जी की कुटिया में आग लगवा दी !
कबीर जी का क्या था ;प्रभु-ईच्छा मान कुटिया के आँगन में ही डेरा जमा लिया और प्रभु गुणगान करना आरम्भ कर दिया !विश्वास कीजियेगा साधकजनों जिस समय कबीर जी की कुटिया में आग लग रही थी ठीक उसी समय उस दुष्टा की कोठी के मुख्य कक्ष में भी आग लगनी शुरू हो गयी और देखते ही देखते पूरी कोठी को अग्नि ने अपनी चपेट में ले लिया !
वह महिला कबीर जी के पास भागी-२ आई ;कहा क्या आपको दिखाई नहीं देता कि आपके पास की कोठी में आग लग गयी है !अपने सहयोगियों को आदेश दीजिये कि वे अग्नि बुझाने में सहायता करे !
कबीर जी ने मुस्कराते हुए कहा -देवी मेरे घर आग लगाई तेरे यार ने और तेरे घर आग लगाई मेरे यार ने ;ये दो यारो के बीच की बात है मैं इसमें आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता !
साधकजनों जिन-२ ने प्रभु को ही मित्र बनाया है प्रभु ने उनके लिए क्या-२ नहीं किया ;आवश्यकता है उन्हें सच्चे ह्रदय से अपना बनाने की !