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मृत्यु के भय से छुटकारा

 

 

एक दिन एक व्यक्ति ने संत रामदास से पूछा, `महाराज, आप इतनी अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं। यह बताइए, आपके मन में कभी कोई विकार नहीं आता?` संत रामदास ने कहा, `सुनो भाई, तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर तो मैं बाद में दूंगा। परंतु आज से ठीक एक महीने बाद इसी समय तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। यह सुन कर उस व्यक्ति के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। वह थर-थर कांपने लगा।
 
सोचने लगा- मेरी मृत्यु! आज से एक महीने बाद! अब क्या होगा? वह जैसे-तैसे घर पहुंचा। घरवालों को संत रामदास की भविष्यवाणी के बारे में बता कर बोला, `अब मेरा अंत समय आ गया है। घर की सारी व्यवस्था आप लोग संभालिए।` घर के सभी लोग स्तब्ध रह गए। रामदास जैसे पहुंचे हुए संत की भविष्यवाणी झूठ तो हो नहीं सकती। उस व्यक्ति को इतनी ठेस लगी कि वह बिस्तर पर पड़ गया। एक-एक दिन गिनने लगा।
 
ज्यों-ज्यों दिन बीतते उसकी वेदना और बढ़ती जाती। आखिर एक माह पूरा हुआ। मृत्यु का वो दिन आ ही गया। लोगों की भीड़ जमा हो गई। सब हैरान, परेशान। इतने में संत रामदास भी आ गए। भीड़ देख कर बोले,` यह सब क्या हो रहा है?` उस व्यक्ति ने बड़ी कठिनाई से बोलते हुए कहा, `आपने ही तो कहा था कि आज मेरी मृत्यु का दिन है।` संत रामदास ने पूछा, `पहले यह बताओ कि इस एक महीने में तुम्हारे मन में कोई विकार आया?`
उस व्यक्ति ने कहा, `विकार! स्वामी जी मेरे सामने तो हर समय मौत खड़ी रही। विकार कहां से आता?` संत रामदास ने कहा, `तुम्हारी मौत-वौत कुछ नहीं आने वाली। अरे पगले, मैंने तो तुम्हारे सवाल का जवाब दिया था। तुम्हारे सामने मौत रही, उसी तरह मेरे सामने ईश्वर रहता है। फिर मेरे मन में विकार कैसे आएगा?` उस व्यक्ति ने राहत की सांस ली। उसने अपना जवाब पा लिया और मृत्यु के भय से छुटकारा भी।