ऊंटों का काफिला कहीं जा रहा था, राह में रात हो गई,ऊंटों को जब बांधा
गया तो एक रस्सी कम निकली. आशंका थी कि ऊंट को बांधा नहीं गया
तो रात कहीं चला न जाये हर उपाय किये पर बात न बनी
तब दूर साधू कि कुटिया दिखी,काफिले का मालिक साधू के पास गया
और समस्या बताई,साधू ने कहा रस्सी तो मेरे पास भी नहीं है पर उपाय
बताता हूँ जैसे सारे ऊटों को बांधा है, वैसे ही आखरी ऊंट को बांध दो
बिना रस्सी के, काफिले का मालिक ने वैसे ही किया, हाथ में रस्सी न थी
पर गले में हाथ घुमा के गांठ बांध दी फिर खूंटे में रस्सी बंधने का
नाटक किया. ऊंट बैठ गया..!
सुबह काफिले को रवाना होना था, सारे ऊंट तैय्यार हो गये पर ये ऊंट
बैठा रहा. हर यत्न किए..काफिले का मालिक साधू के पास पहुंचा और
समस्या बताई..साधू ने पूछा तुमने ऊंट को खोला..काफिले वाला बोला
मैंने उसे बाँधा ही कहाँ है..साधू ने कहा रात जैसे बांधा था वैसे ही खोल
दो,काफिले वाले ने ऊंट को खोलने का नाटक किया.. ऊंट उठ के खड़ा हो
गया..
क्या हम मोह की ऐसी ही डोर से नहीं बंधे हैं...?