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मौत की तलवार

 

 

बड़ी पुरानी कथा है ! एक सन्यासी एक सम्राट के द्वार आया ! उसके गुरु ने उसे भेजा था ! और कहा था , जो मैं तुझे नही समझा पाया वह शायद सम्राट समझा दे ! भरोसा तो नही आया शिष्य को कि जो मैं गुरु से नही सीख सका , वह सम्राट से सीखूंगा ? लेकिन गुरु ने कहा तो आज्ञा मानी !
 
वह जब सम्राट के द्वार पर पहुंचा तो वहां रागरंग चलता था ! शराब पी जा रही थी ! नर्तकिया नाच रही थी ! तो वह बड़ा दुखी हुआ कि कहाँ गलत जगह आ गया ! उसने सम्राट से कहा भी कि मैं वापस लौट जाऊं ! क्योंकि मैं तो कुछ जिज्ञासा ले कर आया था ! यहाँ तो आप खुद ही खोए हुए है ! कौन मेरी जिज्ञासा को पूरी करेगा ?
 
सम्राट ने कहा कि मैं खोया हुआ नही हूँ ! लेकिन थोड़ी देर रुको तो ही तुम्हारी समझ में आ सके ! ऊपर से देख गए तो व्यर्थ ही लौट जाओगे ! भीतर देखोगे तो शायद सूत्र मिल जाए ! गुरु ने सोच कर ही भेजा है ! सूत्र भीतर है , इन्द्रियों में तो सूत्र नही है ! इन्द्रियों के भीतर जो छिपा है वहां सूत्र है !
 
लेकिन सम्राट ने कहा , अब आ गए हो तो रात रुक जाओ ! रात बड़े सुंदर बिस्तर पर सुलाया सन्यासी को , श्रेष्ठतम जो भवन का कक्ष था ! लेकिन एक नंगी तलवार सूत के धागे से ऊपर लटका दी ! रात भर सन्यासी सो न सका ! जागा ही रहा , नींद ही न आए ! करवट बदले , लेकिन ध्यान तलवार पर अटका रहा ! और कब टूट जाए ! कच्चे धागे में लटकी तलवार , कब छाती में छिद जाए ! यह सम्राट ने भी खूब मजाक किया ! इतना अच्छा इंतजाम किया सोने का और ऊपर तलवार लटका दी ? मैं सो न सका ! ध्यान तो वहीँ लगा रहा !
 
सम्राट ने कहा , ऐसे ही मौत की तलवार मेरे ऊपर लटक रही है ! मेरा ध्यान वहां लगा है ! नर्तकी नाचती है , मैं नृत्य में नही हूँ ! शराब डाली जा रही है , मैं शराब में नही हूँ ! सुस्वादु भोजन कर रहा हूँ , मैं स्वाद में नही हूँ ! क्योंकि मेरे ऊपर मौत की तलवार लटकी है , मेरा ध्यान वहीँ है !