शास्त्रों में बताया गया है कि प्रकृति तीन गुणों से बनी है। ये तीन गुण हैं- सत या सात्विक गुण, रज या रजोगुणी व तम या तमोगुणी। देवता सत्त्व गुणों के प्रतीक हैं। इसलिए माना जाता है कि मंदिर की देव मूर्तियों से भी सात्विक ऊर्जा निकल चारों और फैलती हैं। किंतु पूजा, कीर्तन या आरती को छोड़ दूसरी तरह की अनावश्यक बातों या अपशब्दों से निकलने वाली रजोगुणी व तमोगुणी ऊर्जा इसमें रुकावट बनती हैं। इससे भक्त व श्रद्धालुओं को देवीय ऊर्जा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता।