मजबूर

 

 

`ओ... रिक्शे वाले, आजाद नगर चलोगे? `सज्जन व्यक्ति जोर से चिल्लाया।
`हाँ-हाँ क्यों नहीं?` रिक्शे वाला बोला।
`कितने पैसे लोगे?`
`बाबू जी दस रुपए।`
`अरे दस रुपए बहुत ज्यादा हैं मैं पाँच रुपए दूँगा।`
रिक्शे वाला बोला, `साहब चलो आठ...`
`अरे नहीं मैं पाँच रुपए ही दूँगा।` रिक्शेवाला सोचने लगा, दोपहर हो रही है जेब में केवल बीस रुपए हैं, इनसे बच्चों के लिए एक समय का भरपेट खाना भी पूरा नहीं होगा।
मजबूर होकर बोला ठीक है साब बैठो। रास्ते में रिक्शेवाला सोचता जा रहा था, आज का इंसान दूसरे इंसान को इंसान तो क्या जानवर भी नहीं समझता। ये भी नहीं सोचा यहाँ से आजाद नगर कितनी दूर है, पाँच रुपए कितने कम हैं। मैं भी क्या करूँ? मुझे भी रुपयों की जरूरत है इसलिए इसे पाँच रुपए में पहियों की गति के साथ उसका दिमाग भी गतिशील था।
आजाद नगर पहुँचने के बाद जैसे ही वह रिक्शे से नीचे उतरा। एक भिखारी उसके सामने आ गया। सज्जन व्यक्ति ने अपने पर्स से दस रुपए उस भिखारी को दे दिए और पाँच रुपए रिक्शे वाले को।
रिक्शेवाला बोला, साहब मेरे से अच्छा तो यह भिखारी रहा जिसे आपनेदस रुपए दिए। मैं इतनी दूर से लेकर आया और मेरी मेहनत के सिर्फ पाँच रुपए?`
सज्जन व्यक्ति बोला, `भिखारी को देना पुण्य है। मैंने उसे अधिक रुपए देकर पुण्य कमाया है।`
`और जो मेरी मेहनत की पूरी मजदूरी नहीं दी ऐसा करके क्या तुम पाप के भागीदार नहीं?` रिक्शेवाले ने कहा। उसकी बात सुनते ही सज्जन व्यक्ति को क्रोध आ गया। वह बोला -`तुम लोगों से मुँह लगना ही फिजूल है।`