1. गुरु और सूर्य, चंद्र अथवा राहु से केन्द्र में या
त्रिकोण में हो। उनकी युति या प्रतियुति हो
अथवा परस्पर परिवर्तन योग में होगे
2. शुक्र, शनि या गुरु से केन्द्र में या त्रिकोण में आने अथवा उनकी
युति, प्रतियुति या परिवर्तन योग होना हो तब।
3. गुरु आठवें भाव में हो अथवा आठवें भाव के साथ उसका
सम्बंध हो अथवा आठवें भाव में अधिक ग्रह पड़े हों।
4. दसवें भाव के अधिपति के साथ शुक्र के केन्द्र में त्रिकोण में,
परिवर्तन योग में, युति या प्रतियुति में हो।
जन्म कुंडली में उपर्युक्त बताए गए एक या अधिक योग बनते हों
तो कुंडलिनी जागृत करना अधिक सरल रहता है। जन्म कुंडली मे
अग्नि या वायुतत्व की राशि में राहु पड़ा हो तो दैवी शक्ति प्राप्त करने की तरफ व्यक्ति
खूब तेजी से आगे बढ़ सकता है,ऐसा माना जाता है। ऐसा व्यक्ति कोई सिद्धि भी प्राप्त कर सकता है।
किसी सत्पुरुष (संत) से दीक्षा लेने के लिए गोचर में शनि और चंद्र अनुकूल स्थिति में होना आवश्यक और महत्वपूर्ण है। दीक्षा के समय गुरु और शुक्र सूर्य के साथ युति न करते हुए होना चाहिए
इसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यक्ति ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर विजय प्राप्त कर दिव्य जीवन की तरफ आगे बढ़ने में बहुत हद तक सफलता प्राप्त कर सकता है।