जिस भाव की जो राशि हो, उस राशि का स्वामी ही उस भाव का स्वामी या भावेश कहलाता है |
लग्न मे ६, ८, और १२वे भाव के स्वामी जहाँ भी होते हैं, वे उस भाव को हानि पहुंचाते हैं |
यदि किसी भाव का स्वामी अपने ही घर मे बैठा हुआ हो, तो वह शुभ फलदायक होता है |
लग्न मे ११वे घर मे पड़ा हुआ कोई भी ग्रह अच्छा फल देता है |
जिस भाव मे शुभग्रह पड़ा होता है, वह उस घर का शुभफल देता है तथा पापग्रह हो तो अशुभफल देता है |
लग्न से १, ४, ५, ७, ९, और १०वें स्थान मे शुभग्रह हों, तो अच्छा फल देते हैं |
लग्न से ३, ६ और ११वें स्थान मे पापग्रह हो, तो जातक को लाभ होता है |
किसी भी भाव में पड़ा हुआ ग्रह शुभग्रह से देखा जाने पर शुभफल देता है और पापग्रह द्वारा देखे जाने पर अशुभफल देता है |
उच्च ग्रह कुण्डली मे सदैव अच्छा फल देते हैं |
८वें और १२वें भावों मे सभी ग्रह अनिष्ट्कारक होते हैं |
केन्द्र में शुक्र, बुध, और गुरु अच्छे माने जाते हैं | इसी प्रकार गुरु छठे भाव में शत्रुनाशक, शनि आठवें भाव में दीर्घायु कारक होता है एवं मंगल १०वें स्थान में बैठकर भाग्य को बढ़ाता है |
राहु तथा केतु जहाँ भी होते हैं, उस भा की हानि ही करते हैं, परन्तु लग्न से दुसरे स्थान में पड़ा हुआ केतु लाभदायक होता है |
गुरु २, ५, व ७वें भाव में ही, तो धन, पुत्र व स्त्री के लिए कष्टमय होता है |
सूर्य, मंगल, शनि, और राहु पापग्रह माने जाते है |
चन्द्रमा, बुध, शुक्र, केतु और गुरु उत्तरोत्तर शुभग्रह माने गये हैं |