एक बार श्री कृष्ण बलदेव एवं सात्यकि रात्रि के समय रास्ता भटक गये !
सघन वन था ;न आगे राह सूझती थी न पीछे लौट सकते थे !निर्णय हुआ कि घोड़ो को बांध कर यही रात्रि में विश्राम किया जाय !तय हुआ कि तीनो बारी-बारी जाग कर पहरा देंगे !
सबसे पहले सात्यकि जागे बाकी दोनो सो गये !एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यकि को मल्ल-युद्ध के लिए ललकारने लगा !पिशाच की ललकार सुन कर सात्यकि अत्यंत क्रोधित हो गये !
दोनो में मल्लयुद्ध होने लगा !जैसे -जैसे पिशाच क्रोध करता सात्यकि दुगने क्रोध से लड़ने लगते !सात्यकि जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता !मल्ल-युद्ध में सात्यकि को बहुत चोटें आईं !
एक प्रहर बीत गया अब बलदेव जागे !सात्यकि ने उन्हें कुछ न बताया और सो गये !बलदेव को भी पिशाच की ललकार सुनाई दी !बलदेव क्रोध-पूर्वक पिशाच से भिड़ गये !लड़ते हुए एक प्रहर बीत गया उनका भी सात्यकि जैसा हाल हुआ !
अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी !बलदेव ने भी उन्हें कुछ न बताया एवं सो गये !श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई !पिशाच जितने अधिक क्रोध में श्री कृष्ण को संबोधित करता श्री कृष्ण उतने ही शांत-भाव से मुस्करा देते ;पिशाच का आकार घटता जाता !अंत में वह एक कीड़े जितना रह गया जिसे श्री कृष्ण ने अपने पटुके के छोर में बांध लिया !
प्रात:काल सात्यकि व बलदेव ने अपनी दुर्गति की कहानी श्री कृष्ण को सुनाई तो श्री कृष्ण ने मुस्करा कर उस कीड़े को दिखाते हुए कहा -यही है वह क्रोध-रूपी पिशाच जितना तुम क्रोध करते थे इसका आकार उतना ही बढ़ता जाता था !पर जब मैंने इसके क्रोध का प्रतिकार क्रोध से न देकर तो शांत-भाव से दिया तो यह हतोत्साहित हो कर दुर्बल और छोटा हो गया !अतः क्रोध पर विजय पाने के लिये संयम से काम ले !