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कर्मों की गति

 

 

"गंगा-पुत्र" भीष्म... ने ऐसा कौन सा पाप किया था कि उन्हें शर-शैया का अपार असहनीय कष्ट भुगतना पडा ???
 
भीष्म जब शर-शैया पर थे, तो भगवान् श्री कृष्ण उनसे मिलने आये...
शर शैया पर पड़े भीष्म ने कहा, " मैं अपने पिछले एक सौ जन्मों को देख सकता हूँ... मुझे स्मरण नहीं आता कि मैने कोई ऐसा पाप किया हो कि मुझे शर शैया पर सोने का कष्ट भोगना पड़ रहा है" ?
 
भगवान् श्री कृष्ण मुस्कराये और बोले, " पितामह, आप ने एक और जन्म पीछे जा कर देखा होता, तो आप को अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाता... अपने १०१ वें जन्म पूर्व में भी आप एक राजकुमार थे और एक बार शिकार के समय, एक सांप को उसकी पूंछ से पकड़ कर आप ने जो फेंका था, वो कांटो पर जा कर गिरा और मर गया | उस पाप के फलस्वरूप तुम्हें यह शर शैया प्राप्त हुई है |"
 
भीष्म का प्रश्न था, " इस पाप का फल १०१ वर्ष बाद आज क्यों ? पहले किसी जन्म में क्यों नहीं मिला "?
 
भगवान् श्री कृष्ण ने उत्तर दिया, " आपके ये समस्त जन्म शुभ कर्मों से युक्त थे... अतः कहीं उस पाप को भोगने का कारण नहीं बना... अवसर नहीं मिला... वह पाप शुभ कर्मों के प्रभाव से दबा रहा |"
 
भीष्म ने पुन: प्रश्न किया, " प्रभु ! तो इस जन्म में मैने ऐसा क्या किया" ?
 
प्रभु मुस्कराये और बोले, " पितामह ! इस जन्म में आपने अपने अहंकार स्वरुप अपने वचन में फंसकर दुष्ट कौरवों का अन्न खाया... और जानते हुए भी द्रोपदी को सभा में अपमानित करने वालों का विरोध करना तो दूर, अपितु शांत रहे... इस कारण इस जन्म में आपके पूर्व के उस पाप के फल को अवसर प्राप्त हुआ |"
 
कर्मों की गति बड़ी विचित्र और अटल है... व्यक्ति को प्रत्येक शुभ-अशुभ कर्मों का फल... कभी न कभी भुगतना ही पड़ता है... यही इस प्रकृति का अटल नियम विधान है...
 
अत: हमें प्रत्येक क्षण अपने देहिक और मानसिक... दोनों प्रकार के... कर्मों का... भली-भाँती बड़ी सावधानी से अध्ययन करते रहना चाहिए... क्यूंकि वर्तमान ही भविष्य का अतीत है.