Home » Articles » Hanuman Ji Ki Aayu
 

हनुमान जी की आयु

 

हनुमान जी की आयु के रहस्य का विवेचन करना एक समस्या है, ऐसे तो ये अश्व्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, क्रिपाचार्य, परशुराम और मार्कंडेय -- इन आठ चिरजिवियो में एकतम है. किन्तु हनुमान जी को केवल चिरजीवी कहना पर्याप्त नहीं है - इन्हें नित्याजिवी अथवा अजर-अमर कहना भी असंगत नहीं, क्योंकि लंका - विजय के पश्चात् हनुमान जी ने एकमात्र श्रीराम में सदा के लिए अपनी निश्छल भक्ति की याचना की थी और श्रीराम ने इन्हें ह्रदय से लगाकर कहा था - कपिश्रेष्ठ ऐसा ही होगा. 

संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति भी अमित रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे. तुमने मुझपर जो उपकार किये है, उनका बदला मै नहीं चुका सकता. इस प्रकार जब श्रीराम ने चिरकाल तक संसार में प्रसन्नचित्त होकर जीवित रहने का इन्हें आशीर्वाद दिया, तब इन्होने भगवान से कहा - जब तक संसार में आपकी पावन कथा का प्रचार होता रहेगा, तब तक मै आपकी आज्ञा का पालन करता हुआ पृथ्वी पर रहूँगा. 

इंद्र से भी हनुमान जी को वरदान मिला था कि इनकी मृत्यु तब तक नहीं होगी. जब तक स्वयं इन्हें मृत्यु की इच्छा नहीं होगी. भगवान श्री राम ने इनकी भक्ति की निष्ठा के कारण अत्यंत प्रसन्न होकर कहा - 'हनुमान! मै तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ, तुम जो वर चाहो मांग लों, जो वर त्रिलोक में देवताओं को भी मिलना दुर्लभ है, वह भी मै तुम्हे अवश्य दूंगा. 

तब हनुमान जी ने अत्यंत हर्षित होकर भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणिपात करके कहा - 'प्रभो! आपका नामस्मरण करते हुए मेरा मन तृप्त नहीं होता. अत: मै निरंतर आपके नाम का स्मरण करता हुआ पृथ्वी पर सथित रहूँगा. राजेन्द्र! मेरा मनोवांछित वर यही है कि जब तक संसार मे आपका नाम स्थित रहे, तब तक मेरा शरीर भी विद्यमान रहे. इस पर भगवान श्रीराम ने कहा - ऐसा ही होगा, तुम जीवन्मुक्त होकर संसार में सुखपूर्वक रहो. 

कल्प का अंत होने पर तुम्हे मेरे सायुज्य की प्राप्ति होगी इसमें संदेह नहीं. श्री राम जी के समान ही भगवती जानकी जी ने भी अपने सच्चे भक्त हनुमान जी को आशीर्वाद देते हुए कहा - मारुते! तुम जहाँ कही भी रहोगे, वही मेरी आज्ञा से सम्पूर्ण भोग तुम्हारे पास उपस्थित हो जायेंगे. इन प्रमाणों से ज्ञात होता है कि हनुमान जी ना केवल चिरंजीवी है, अपितु नित्याजिवी, इच्छा-मृत्यु तथा अजर-अमर भी है, भगवान श्रीराम उन्हें कल्प के अंत में सायुज्य मुक्ति का वरदान प्राप्त है, अत: उनकी अजरता-अमरता में कोई संशेय नहीं। 

जनश्रुतियो से ज्ञात होता है आज भी वे अपने नैष्ठिक भक्त-उपासको को यदा-कदा जिस किसी रूप में दर्शन देते है।