एक प्रसिद्ध वक्ता ने सेमीनार में अपनी जेब से १०० डालर का नोट निकला और कमरे में उपस्थित २०० लोगों से पूछा – “कौन यह १०० डालर का नोट लेना चाहता है?”
सभी मौजूद लोगों ने अपने हाथ उठा दिए।
वक्ता ने कहा – “यह नोट मैं आपको ज़रूर दूँगा लेकिन उससे पहले मैं इसे…” – यह कहते हुए उसने उस नोट को अपने हाथ में कसकर भींचकर दिया।
उसने फ़िर पूछा – “अभी भी किसी को नोट चाहिए?”
अभी भी सारे हाथ ऊपर उठ गए।
“अच्छा!” – वक्ता ने कहा – “और अगर मैं इस नोट के साथ यह करूँ” – कहते हुए उसने नोट को ज़मीन पर पटककर उसे अपने जूते से मसल दिया। (हम भारतवासी तो ऐसा कदापि न करें)
उसने फ़िर वह गन्दा तुड़ा-मुड़ा सा नोट उठाया और फ़िर से कहा – “क्या अब भी कोई इसे लेना चाहेगा?”
अभी भी सारे लोग उसे लेने के लिए तैयार थे।
“दोस्तों” – वक्ता ने कहा – “आप सभी ने आज एक बेशकीमती सबक सीखा है। इस नोट के साथ मैंने इतना कुछ किया पर सभी इसे लेने के लिए तैयार हैं क्योंकि इसकी कीमत कम नहीं हुई। यह अभी भी १०० डालर का नोट है”।
“हमारी ज़िंदगी में हमें कई बार गिराया, कुचला और अपमानित किया जाता है पर इससे हमारी कीमत – हमारा महत्त्व कम नहीं हो जाता। इसे हमेशा याद रखें”।