अब क्या हो! उनका एक साथी कहीं गुम हो गया| सब परेशान होकर एक-दूसरे का मुंह देखने लगे|
तभी एक आदमी उधर से गुजरा| उन्हें परेशान देखकर उसने पूछा - "क्या बात है?"
उन सबने अपनी हैरानी बता दी कि हम घर से दस चले थे अब नौ रह गए हैं|
उस आदमी ने उन पर एक निगाह डाली| बोला - "लो तुम्हारे खोए साथी को मिलाए देता हूं|"
उसने सबको पंक्ति में खड़ा करके गिनना आरंभ किया| वे पूरे दस निकले|
सारे लड़के बड़े खुश हुए| उन्होंने उस आदमी का आभार मानते हुए पूछा - "भाई तुमने दसवां साथी कैसे मिला दिया|"
उस आदमी ने कहा - "भले आदमियों, तुममें से जो गिनता था, वह अपने को गिनना छोड़ देता था| इसी से हिसाब गलत हो जाता था|"
उसका कहना सही था, हम अपने को भूल जाते हैं| इसी से दुनिया अधूरी दिखती है| इसी लिए वेदांत का कथन है कि पहले अपने को पहचानो फिर दुनिया को