पूर्णबली गुरु की दशा जातक को राज्य में सम्मान प्रदान करती है, उसके स्वस्थ्य में असाधारण वृद्धि करती है तथा चेहरे की कान्ति बढ़ती है | या दशा धन-लाभ करने के साथ-साथ, राज्य-सुख, पुत्र-प्राप्ति तथा शत्रु एवं रोग का नाश करती है |
मध्यबली गुरु की दशा मैन्राज्य से सम्बन्धित उच्च अधिकारीयों से मित्रता स्थापित होती है, पुत्र ख्याति प्राप्त करते हैं तथा जातक को स्त्री एवं मित्र का सुख प्राप्त होता है |
अल्पबली गुरु की दशा दरिद्रता प्रदान करती है, शत्रुओं की ओर से नित्य हानि होती है तथा कर्णरोगों से जातक परेशान रहता है | यह दशा हृदय में वैराग्य की भावना स्थापित करती है, थोडा धनागम भी होता है और जातक छोटी-छोटी कलाओं में प्रवीणता प्राप्त करने का प्रयास करता है |
नष्टबली ब्रहश्पति की दशा चर्म एवं रुधिर-विकार से उत्पन्न कई प्रकार के रोग जातक को प्रदान करती है | जातक स्त्री तथा पुत्र की ओर से चिन्तित रहता है तथा धन के नाश के साथ-साथ उसे शरीर-पीड़ा भी होती है |
दशापति गुरु ६, ८, १२वें भावों से अन्य स्थानों में हों, तो नष्टबली गुरु आधा शुभफल देता है और हीनबली मध्यफल तथा मध्यबली शुभफल देता है | पूर्णबली अत्यन्त शुभफल देता है | ८, ६, १२वें स्थानों में उत्तमबली गुरु भी पूर्ण रूप से शुभफल नहीं देता |