जो भाव अपने स्वामी से या शुभग्रहों से युक्त अथवा द्रष्ट होता है, उस भाव की वृद्धि तथा पापीग्रहों से युक्त अथवा द्रष्ट होने पर उस भाव की हानि होती है |
सौम्य राशि लग्न में हो तो कार्यसिद्धि होती है |
क्रूर लग्नयुक्त ग्रह हो, तो कार्य पूर्ण होने में विलम्ब समझना चाहिए |
लग्न को लग्नेश न देखकर शुभग्रह देखे, तो चौथाई योग समझना चाहिए |
लग्नेश को शुभ ग्रह देखे और कार्यसिद्धि योग उनमें न हो, तो आधा योग माना जायेगा |
एक शुभ ग्रह लग्न या लग्नेश को देखे, तो जातक की कार्यसिद्धि अवश्य होती है |
लग्नेश को दो या तीन शुभग्रह देखते हों, तो ऐसा योग त्रिभागोंन कहलाता है और कार्यसिद्धि करता है |
पापग्रह दृष्टिरहित चन्द्रमा और शुभग्रह लग्न तथा लग्नेश को देखे, तो पूर्ण कार्यसिद्धि का योग समझना चाहिए |
कार्य से सम्बन्धित भाव का स्वामी पापग्रहयुक्त या दृष्ट हो, तो कार्यंनाश समझना चाहिए |