एक दिन एक राजा ने अपने
सभासदों से कहा, ‘क्या तुम लोगों में
कोई ईश्वर केहोने का प्रमाण
देसकता है ?’ सभासद सोचने लगे, अंत
में एक मंत्रीने कहा, ‘महाराज, मैं कल
इस प्रश्न का उत्तर लाने
का प्रयास करूंगा।’ सभा समाप्त
होने के बाद उत्तर की तलाश में वह
मंत्री अपने गुरु के पास जा रहा था।
रास्ते में उसे गुरुकुल का एक
विद्यार्थी मिला।
मंत्री को चिंतित देख उसने पूछा, ‘सब
कुशल मंगल तो है ? इ तनी तेजी से
कहां चले जा रहे हैं ?’
मंत्री ने कहा, ‘गुरुजी से ईश्वर
की उपस्थिति का प्रमाण पूछने
जा रहा हूं।’ विद्यार्थी ने कहा,
‘इसके लिए गुरुजी को कष्ट देने
की क्या आवश्यकता है ?
इसका जवाब तो मैं ही देदूंगा।’ अगले
दिन मंत्री उस विद्यार्थी को लेकर
राजसभा में उपस्थित हुआ और बोला,
‘महाराज यह विद्यार्थी आपके
प्रश्न का उत्तर देगा।’
विद्यार्थी ने पीने के लिए एक
कटोरा दूध मांगा। दूध मिलने पर
वह उसमें उंगली डालकर
खड़ा हो गया। थोड़ी-थोड़ी देर में
वह उंगली निकालकर कुछ देखता,
फिर उसे कटोरे मेंडालकर
खड़ा हो जाता। जब काफी देर
हो गई तो राजा नाराज होकर
बोला, ‘दूध पीतेक्यों नहीं? उसमें
उंगली डालकर क्या देख रहे हो?’
विद्यार्थी ने कहा, ‘सुनाहै, दूध में
मक्खन होता है, वही खोज रहा हूं।’
राजा ने कहा,
‘क्या इतना भी नहीं जानते कि दूध
उबालकर उसे बिलोनेसे मक्खन
मिलता है।’ विद्यार्थी ने
मुस्कराकर कहा, ‘हे राजन, इसी तरह
संसार में ईश्वर चारों ओर व्याप्त
है,लेकिन वह मक्खन की भांति अदृश्य
है। उसे तप से प्राप्त
किया जाता है।’ राजा नेसंतुष्ट
होकर पूछा, ‘अच्छा बताओ कि ईश्वर
करताक्या है ?’
विद्यार्थी ने प्रश्न किया, ‘गुरु
बनकर पूछ रहे हैं या शिष्य बनकर?’
राजा ने कहा, ‘शिष्य बनकर।’
विद्यार्थी बोला, ‘यह कौन
सा आचरण है?शिष्य सिंहासन पर है
और गुरु जमीन पर।’ राजा ने झट
विद्यार्थी को सिंहासन पर
बिठा दिया औरस्वयं नीचे
खड़ा हो गया। तब
विद्यार्थी बोला,‘ईश्वर
राजा को रंक और रंक
को राजा बनाता है।’
मित्रो, ईश्वर कि उपस्थिति के
किसी प्रमाण
कीक्या आवश्यकता है ? हमारा इस
संसार में होना ही इस बात
का प्रत्यक्ष प्रमाण है. वह तो कण
कण मेंहै. जैसे दूध में मक्खन और
दही दिखाई नहीं देते, माचिस
की तीली में आग नजर नहीं आती,ऐसे
ही ईश्वर भी प्रत्यक्ष दिखाई
नहीं देते. वह हमसे पूर्ण समर्पण और
पूरा विश्वास चाहते हैं . ईश्वर के
प्रत्यक्ष दर्शन के लिए एक पूर्ण
सद्गुरु की तलाश करे!!