हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा पर चंद्र दर्शन का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से अमृत बरसता है। इसी अमृत पान की कामना से चंद्रमा की रोशनी में दूध या खीर रखने के बाद ग्रहण किया जाता है।
इस प्रथा के पीछे जीवन के गहरे संदेश छुपे हैं। किंतु अक्सर व्यावहारिक जीवन में धर्मावलंबी इन संदशों की समझ से बहुत दूर देखे जाते हैं। इससे मात्र यह धार्मिक विधान बनकर रह जाता है। इसलिए यहां जानते है पूर्णिमा के चांद की खूबसूरती से जुड़े व्यावहारिक पहलू को -
दरअसल वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है। बारिश के मौसम में बादलों के पीछे छुपा चांद पहली बार शरद पूर्णिमा पर पूरी चमक और शरद ऋतु की शीतलता के साथ उदय होता है। इसे जीवन के धरातल पर रखकर विचार करें तो चंद्रमा की चमक, उसकी शीतलता और चंद्रदर्शन कर खीर या दूध पीना संकेत है कि अगर जीवन में काबिलियत और व्यक्तित्व की चमक बिखेरना चाहते हैं तो नजर और नजरिया साफ होने के साथ ही मीठी वाणी और संयम भी होना जरूरी है। तभी आप भी दूसरों से अच्छा व्यवहार पाने के साथ ही मीठे बोल भी सुन पाएंगे। कहते भी है ना जैसा बोलोगे वैसा सुनोगे। ऐसा होने पर ही आपका जीवन सुख और आनंद से बीतेगा। शरद पूर्णिमा पर चंद्रदर्शन कर नेत्रज्योति बढऩे और फिर खीर पीने यानि मीठा ग्रहण कर अमृ़तपान करने के पीछे यही संदेश है।पूर्णिमा पर पूर्ण कलाओं और ठंडक के साथ दिखाई देने वाला चांद यह भी कहता है कि जीवन में अपने लक्ष्य को पाने या बुरे समय से बाहर आने की कोशिशों में निरंतरता रखें और आगे बढ़ते रहें। अर्थ यह है कि ऐसे अनमने और आधे-अधूरे प्रयास न करें, जिससे आपको विफलता मिले। जैसे शुक्ल पक्ष के 15 दिनों में चांद बढ़ता है और कृष्ण पक्ष के 15 दिनों में घटकर अमावस्या के दिन दिखाई नहीं देता। सार यही है कि सिर्फ पूर्णिमा के चांद की तरह चमकने की आरजू ही सार्थक होती है। तभी आप बारिश के मौसम के गर्दिश रुपी बादलों में छुपे चांद की तरह बाहर आकर अपनी प्रतिभा और पहचान की चमक बिखेर पाएंगे।