बालि और सुग्रीव को वानरश्रेष्ठ ऋक्ष राजा का पुत्र कहा जाता है। सुग्रीव को इन्द्र का पुत्र भी कहा गया है। बालि सुग्रीव का बड़ा भाई था। वह पिता और भाई का अत्यधिक प्रिय था। पिता की मृत्यु के बाद बालि ने राज्य सम्भाल लिया था। बालि का विवाह वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा के साथ सम्पन्न हुआ था। एक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान चौदह मणियों में से एक अप्सराएँ भी थीं। उन्हीं अप्सराओं में से एक तारा थी। बालि और सुषेण दोनों समुद्र मन्थन में देवतागण की मदद कर रहे थे। जब उन्होंने तारा को देखा तो दोनों में उसे पत्नी बनाने की होड़ लगी। बालि तारा के दाहिनी तरफ़ तथा सुषेण उसके बायीं तरफ़ खड़े हो गये। तब विष्णु ने फ़ैसला सुनाया कि विवाह के समय कन्या के दाहिनी तरफ़ उसका होने वाला पति तथा बायीं तरफ़ कन्यादान करने वाला पिता होता है। अतः बालि तारा का पति तथा सुषेण उसका पिता घोषित किये गये।