एक बार किसी विद्वान् से एक बूढ़ी औरत ने पूछा कि क्या इश्वर सच में होता है ? उस विद्वान् ने कहा कि माई आप क्या करती हो ? उसने कहा कि मै तो दिन भर घर में अपना चरखा कातती हूँ और घर के बाकि काम करती हूँ , और मेरे पति खेती करते हैं . उस विद्वान ने कहा कि माई क्या ऐसा भी कभी हुआ है कि आप का चरखा बिना आपके चलाये चला हो , या कि बिना किसी के चलाये चला हो ? उसने कहा ऐसा कैसे हो सकता है कि वो बिना किसी के चलाये चल जाये? ऐसा तो संभव ही नहीं है. विद्वान् ने फिर कहा कि माई अगर आपका चरखा बिना किसी के चलाये नहीं चल सकता तो फिर ये पूरी सृष्टि किसी के बिना चलाये कैसे चल सकती है ? और जो इस पूरी सृष्टि को चला रहा है वही इसका बनाने वाला भी है और उसे ही इश्वर कहते हैं.
उसी तरह किसी और ने उसी विद्वान् से पूछा कि आदमी मजबूर है या सक्षम? उन्होंने कहा कि अपना एक पैर उठाओ, उसने उठा दिया, उन्होंने कहा कि अब अपना दूसरा पैर भी उठाओ, उस व्यक्ति ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है? मै एक साथ दोनों पैर कैसे उठा सकता हूँ? तब उस विद्वान् ने कहा कि इंसान ऐसा ही है, ना पूरी तरह से मजबूर और ना ही पूरी तरह से सक्षम . उसे इश्वर ने एक हद तक सक्षम बनाया है और उसे पूरी तरह से छूट भी नहीं है . उसको इश्वर ने सही गलत को समझने कि शक्ति दी है और अब उसपर निर्भर करता है कि वो सही और गलत को समझ कर अपने कर्म को करे.