श्री कृष्ण द्वारा एकादशी व्रत के महात्मय को सुनने के पश्चात, युधिष्ठिर बोले, हे गुणातीत! हे योगेश्वर! अब आप इस व्रत का विधान जो है वह सुनाइये।
युधिष्ठिर की बात सुनकर श्री कृष्ण कहते हैं, हे धर्मराज! वरुथिनी एकादशी व्रत का पालन करने वाले को दशमी के दिन स्नानादि से पवित्र होकर भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस दिन कांसे के बर्तन, मसूर की दाल, मांसाहार, शहद, शाक, उड़द, चना, का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रती को इस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और स्त्री प्रसंग से दूर रहना चाहिए। आत्मिक शुद्धि के लिए पुराण का पाठ और भग्वद् चिन्तन करना चाहिए।
एकादशी के दिन प्रात: स्नान करके श्री विष्णु भगवान की पूजा विधि विधान से करनी चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं विष्णु जी की कथा का रसपान करना चाहिए। श्री विष्णु के निमित्त निर्जल रहकर व्रत का पालन करना चाहिए। किसी के लिए अपशब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए व परनिन्दा से दूर रहना चाहिए। रात्रि जागरण कर भजन, कीर्तन एवं श्री हरि का स्मरण करना चाहिए।
द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात स्वयं तुलसी से परायण करके अन्न जल ग्रहण करना चाहिए।