निर्जला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सर्वप्रथम शेषशायी भगवान विष्णु जी की पंचोपचार से पूजा करें। इसके पश्चात मन को शांत रखते हुए 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करें। शाम को पुन: भगवान की पूजा करें व रात में भजन कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें।
दूसरे दिन किसी योग्य ब्राह्मण को आमंत्रित कर उसे भोजन कराएं तथा जल से भरे कलश के ऊपर सफेद वस्त्र ढक कर और उस पर शर्करा (शक्कर) तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। इसके अलावा यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष दूर हो जाता है तथा सम्पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलता है -
एवं य: कुरुते पूर्णा द्वादशीं पापनासिनीम् ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥
इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।