एकादशी तिथि का व्रत दशमी तिथि से ही प्रारम्भ समझना चाहिए. एकाद्शी व्रत तभी सफल होत है, जब इस व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही किया जाता है. जिस व्यक्ति को दशमी तिथि का व्रत करना हो, उस व्यक्ति को दशमी तिथि में व्यवहार को सात्विक रखना चाहिए. सत्य बोलना और मधुर बोलना चाहिए. ऎसी कोई बात नहीं करनी चाहिए. कि जो किसी को दू:ख पहुंचाये.
व्रत की अवधि लम्बी होती है. इसलिये उपवासक में दृढ संकल्प का भाव होना चाहिए. एक बार व्रत शुरु करने के बाद मध्य में कदापि नहीं छोडना चाहिए. दशमी तिथि के दिन रात्रि के भोजन में मांस, जौ, शहद जैसी वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए. और एक बार भोजन करने के बाद रात्रि में दोबारा भोजन नहीं करना चाहिए. दशमी तिथि से ही क्योकि व्रत के नियम लागू होते है, इसलिये भोजन में नमक नहीं होना चाहिए. भोजन करने के बाद व्यक्ति को भूमि पर शयन करना चाहिए. और पूर्ण रुप से ब्रहाचार्य का पालन करना चाहिए.
व्रत के दिन अर्थात एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए. स्नान से पहले नित्यक्रियाओं से मुक्त होना चाहिए. और स्नान करने के लिये मिट्टी, तिल और कुशा का प्रयोग करना चाहिए. यह स्नान अगर किसी तीर्थ स्थान में किया जाता है, तो सबसे अधिक पुन्य देता है. विशेष परिस्थितियों में घर पर ही स्नान किया जा सकता है.
स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए. और भगवान श्री विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद भगवान का पूजन करना चाहिए. पूजन करने के लिये सर्वप्रथम कुम्भ स्थापना की जाती है. कुम्भ के ऊपर भगवान श्री विष्णु जी की प्रतिमा रखी जाती है, और उसका पूजन धूप, दीप, पुष्प से किया जाता है.