दीपावली की अर्द्धरात्रि के पश्चात् दो घटी (४८ मिनट) का मुहूर्त महानिशाकाल कहलाता है। निशाकाल तो प्रत्येक रात्रि को आता है, किंतु वर्ष में एक बार दीपावली की मध्यरात्रि को यह महानिशाकाल कहलाता है। यह स्वयं सिद्ध शुभ मुहूर्त है। इस मुहूर्त में शुभ कार्य करने के लिए लग्न शुद्धि ढूंढने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। दीपावली की महानिशा में कुछ घंटों की मंत्र आराधना से ही मंत्र सिद्ध और प्रभावी हो जाते हैं। महानिशाकाल : यह महालक्ष्मी की प्रसन्नता एवं कृपा प्राप्ति हेतु मंत्रानुष्ठान सिद्धि का स्वर्णिम अवसर है। तंत्र साधक दीपावली की रात्रि को कालरात्रि या सिद्धरात्रि के नाम से पुकारते हैं।
दीपावली की रात्रि मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन आदि की सिद्धि कुछ घंटों की साधना से सरलतापूर्वक हो जाती है।
स्नान आदि के उपरांत साधक पवित्र भाव से श्री महालक्ष्मी, गणेश, कुबेर आदि की पूजा हेतु लाल रंग के आसन पर बैठें। एक पट्टे पर लाल कपड़ा बिछाकर पट्टे को चारों ओर से कलावे से बांध दें। फिर इस पर हल्दी और आटे से एक अष्टदल कमल या श्री लक्ष्मी यंत्र बनाएं। पट्टे पर एक ओर लघु सूखा नारियल और दूसरी ओर दक्षिणावर्ती शंख स्थापित करें। पट्टे के नीचे दायीं ओर चावल की ढेरी पर तांबे का एक छोटा सा कलश स्थापित करें।
पूजा प्रारंभ करने से पूर्व साधक दुरात्माओं और आसुरी शक्तियों को भगाने के लिए चारों दिशाओं में राई या सरसों फेंकें तथा पवित्रीकरण मंत्र से अपने चारों ओर पवित्र जल से छींटे डालें। स्वस्ति मंत्र का पाठ करके हाथ में जल लेकर संकल्प मंत्र से पूजा का संकल्प लें।
सर्वप्रथम श्री गणेश जी का ध्यान, आवाहन, पूजन करें।
गणेश पूजने न्यूनाधिकं कृतम। अनया पूजया सिद्धि-बुद्धि सहितो, श्रीमहागणपति प्रियतां न मम्॥
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारु भक्षण्म्।
उमासुत शोकविनाशकं, नमामि विनेश्वर पाद पंकजम्॥
श्री मन्महागणाधिपतये नमः।.....पाद्यं समर्पयामि, .....अर्य समर्पयामि, .....आचमनं समर्पयामि, .....पंचामृत स्नानं समर्पयामि .....आदि मंत्र से षोडशोपचार पूजन करें।
÷ओम नमो विनहराये गं गणपतये नमः' मंत्र जप कर कम से कम ८ बार नमस्कार करें।
श्री गणेश पूजन के पश्चात शंख, कलश, षोडश मातृका एवं नवग्रहों का पूजन करें।
फिर श्रीयंत्र की स्थापना एवं पंचोपचार पूजन करें। श्रीयंत्र के पूजन में राजराजेश्वरी मां त्रिपुर सुंदरी श्री ललिता देवी का आवाहन-ध्यान निम्न मंत्रों से करें।
देवी बालार्क नमस्तुभ्यं चपलायै नमो नमः।
श्री यंत्रराज स्थिते देवी ललितायो नमो नमः॥
दिव्या परां सुधवलां श्री चक्रयाता। मूलादि बिंदु परिपूर्ण कलात्मरूपा॥
स्थित्यामिकां शरधनु सृणि पाशहस्तां। श्रीचक्रतां परिणार्ता सततं नमामि॥
श्री लक्ष्मी जी की प्राण प्रतिष्ठा
पूर्व में तैयार किए गए अष्टदल कमल, श्री लक्ष्मीयंत्र या श्रीयंत्र पर श्रीमहालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का मंत्र निम्नलिखित है।
ओम अस्य प्राणाः प्रतिष्ठान्तु अस्मे प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्मै देव त्वमर्चामै मामहेतिच कश्चन्॥
श्रीलक्ष्मी का ध्यान
हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर पद्मासन में बैठकर श्री महालक्ष्मी देवी का ध्यान करें-
हस्त द्वयेन कमले धारयंती स्वलीलया। हारनूपुर संयुक्ता लक्ष्मी देवी विचिन्तयेत॥
अष्टलक्ष्मी पूजन :
श्री महालक्ष्मी की स्थपना और ध्यान के पश्चात् दाएं हाथ में रोली, अक्षत और पुष्प लेकर अष्ट लक्ष्िमयों को अर्पित करते हुए नमस्कार करें-
ओम आद्या नमः
ओम विद्या लक्ष्म्यै नमः
ओम सौभाग्य लक्ष्म्यै नमः
ओम अमृत लक्ष्म्यै नमः
ओम काम लक्ष्म्यै नमः
ओम सत्य लक्ष्म्यै नमः
ओम भोग लक्ष्म्यै नमः
ओम योग लक्ष्म्यै नमः।
दीप अर्पण मंत्र
इसके पश्चात् श्री महालक्ष्मी को पांच ज्योतियों वाला गोघृत का दीपक निम्न मंत्र के द्वारा अर्पित करें-
ओम कर्पासवर्ति संयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्। तमो नाशकरं दीपं ग्रहणं परमेश्वरी॥
श्रीसूक्त के मंत्रों से श्री महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
हाथ में पुष्प लेकर श्री महालक्ष्मी का आवाहन करें-
ओम हिरण्यवर्णा हरिणी सुवर्ण रजतस्त्रजाम्।
चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो मे आवह॥
ओम श्रीं हृीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः आवाहनंचासनं समर्पयामि।
इस प्रकार श्री सूक्त के प्रत्येक मंत्र के बाद ओम श्रीं हृीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः लगाकर पूजन कर उपचारों को आगे बढ़ाते जाएं।
अष्टसिद्धियों का पूजन
श्रीसूक्त के १५वें श्लोक के बाद अष्टसिद्धियों का पूजन करें। निम्न मंत्रों के साथ रोली, पुष्प और अक्षत श्री लक्ष्मी प्रतिमा के आठों ओर विभिन्न दिशाओं में क्रमशः अर्पित करें, जैसा कि नीचे बताया गया है।
ओम अणिम्नै नमः - पूर्व दिशा में
ओम महिम्नै नमः - आग्नेय कोण में
ओम गारिम्नै नमः - दक्षिण दिशा में
ओम लाघिम्नै नमः - नैर्ऋत्य दिशा में
ओम प्राप्त्यै नमः - पश्चिम दिशा में
ओम प्राकाम्यै नमः - वायव्य दिशा में
ओम ईशितायै नमः - उत्तर दिशा में
ओम वश्तिायै नमः - ईशान कोण में
इसके उपरांत प्रार्थना और श्रीसूक्त के १६ मंत्र से पूजा का विसर्जन करें। लक्ष्मी पूजा के अंत में श्री सूक्त के मंत्रों से हवन (यज्ञ) करना भी लाभकारी सिद्ध होता है। यदि आप किसी मंत्र या यंत्र को सिद्ध करना चाहते हैं तो श्री लक्ष्मी पूजा के उपरांत मध्य रात्रि में लगभग १२ बज कर ३० मिनट से प्रारंभ करें।
श्री लक्ष्मी प्राप्ति के कुछ अमोघ मंत्र एवं
स्तोत्र-
धन की स्थिरता और धन प्राप्ति के लिए श्री लक्ष्मी स्तोत्र-
त्रैलोक्य पूजिते देवि कमले विष्णु वल्लभे।
यथ त्वमचला कृष्णे तथा भावभार्य स्थिरा॥
ईश्र्वरी कमला लक्ष्मीश्चला भूतिहरिप्रिया।
पद्मा पद्मालया संपदुच्चैः श्री पद्माधारिणी॥
द्वादश एतानि नामानि लक्ष्मी संपूज्यः पठेत्। स्थिर लक्ष्मी केतस्थ पुत्रदारादिभिः सह॥
श्री लक्ष्मी गायत्री
ओम हृीं महाक्ष्म्यै च विद्महै, विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्॥
ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥
श्रीं हृीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्र्रसीद। श्रीं हृीं श्रीं ओम महालक्ष्म्यै नमः॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
इन तीनों मंत्रों का एक साथ जप करने से संपुटित महालक्ष्मी बीज मंत्र बन जाता है। अर्थात् तीसरे मंत्र में महालक्ष्मी के बीज मंत्र को श्री दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से संपुटित/सुरक्षित किया गया है जिससे वह अधिक प्रभावशाली बन गया है।
उक्त मंत्रों का जप स्फटिक या कमलगट्टे की माला से करना चाहिए।
मंत्र - ÷ ओम श्रीं हृीं श्रीं कमलवासिन्यै नमः स्वाहा।'